Home Blog रेप का मनोविज्ञान

रेप का मनोविज्ञान

by Dr Shambhu Kumar Singh

रेप का मनोविज्ञान

स्त्री पुरूष शारीरिक संबंध स्वाभाविक है। यह नैसर्गिक है और एक दूसरे के प्रति आकर्षण भी । ये सभी बायोलॉजिकल प्रतिफल हैं।
हमारे समाज में यौन संबंध को आपसी सहमति से स्वीकृति प्राप्त है। वरन विवाहेत्तर सम्बंध भी मान्य हो गए। अब लिव इन रिलेशनशिप का भी चलन है। ऐसे अब यौन रिश्तों में विस्तार हुआ है। पर यही रिश्ते जब जबरन बनने लगे तो रेप कहलाते हैं। भारतीय कानून में भी रेप को स्पष्ट परिभाषित किया गया है।
अब समझें कि रेप होते क्यों हैं ? रेप केवल यौन संबंध नहीं है। यह सहवास या संभोग की क्रिया नहीं है। इसके पीछे विकृत मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं। रेप की पहली शर्त यह है कि यह जबरन होते हैं। तो हिंसा या परपीड़ा से तुष्टि पाने वाले लोग रेप कर यौन तुष्टि नहीं वरन मानसिक तुष्टि पाते हैं। दुखद है कि स्त्री को न केवल भारत में वरन पूरे विश्व में व्यक्ति समझा ही नहीं जाता। उसे केवल उपभोग की वस्तु समझा जाता है। इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो आक्रांताओं ने जब भी देश को लूटा है तो हीरे ,जवाहिरात ,सोना ,चांदी के साथ स्त्रियों पर भी कहर ढाया है। स्त्रियों को भी लूटा गया है। इसके पीछे यही भावना काम करती है कि स्त्री व्यक्ति नहीं माल है। इनका उपभोग किया जाए। यह उन आधुनिक देशों में भी चलन में हैं जिनके प्रगतिशील विचारों के हम कायल होते हैं।
चूंकि स्त्री वस्तु है तो पुरुष स्वामी है ।ऐसे में स्त्री दासी हो जाती है। यह अभी भी चल ही रहा है वहाँ भी जहाँ स्त्री को हम बहुत क्रूर पाते हैं और पुरुषों के प्रति हमदर्दी जताते हैं । इसके मूल में यही स्त्री दास प्रथा की मानसिकता है। एक पुरुष को एक से ज्यादा स्त्रियों से संबंध बनाने की इजाजत है ,पर स्त्री को नहीं । उनके लिए कितने ही नियम कायदे हैं । पहले हरम होता था। पटरानियां,रानियां,उप रानियां होती थी । रखैल होते थे। इनकी रक्षा हेतु किन्नर चौकीदार होते थे। ये भोग्या केवल एक स्वामी की ही सम्पत्ति थी तो बहुत सारी नैतिकता ,विधि ,विधान ,विवेक की बातें तय की गई पर वह भी केवल स्त्री के लिए । पुरुष तो स्वतंत्र है । छुट्टा साँढ़ है । वह अपने हेतु नियम बनाने में ढीला रहा। स्त्री के यौन जीवन को शुचिता और प्रतिष्ठा का विषय बनाया गया । यहाँ यह केवल स्त्री पर ही लागू करने का विषय रहा। तो पुरुष जब किसी स्त्री के साथ सहवासरत होता है , वह उपभोक्ता ही खुद को समझता है। और जब उपभोक्तावाद किसी पर हावी है तो संवेदना की क्या बात ,स्वाद आना चाहिए ? आनंद मिलना चाहिए !
दूसरे की स्त्री के साथ सम्बंध बनाना खुद को विजेता साबित करने जैसा है। लोग चटखारे ले ऐसे किस्से सुनाते हैं। उनके साथ जबरदस्ती या शारीरिक दुर्व्यवहार करना उनको अपमानित करने जैसा है । रेपिस्ट के अहं को यह भाव भी सुकून देता कि उसने अपने दुश्मन परिवार को लांक्षित किया जब बात आपसी दुश्मनी की है तब ।रेप के दौरान पीड़ा पहुंचाना, यौन अंग को क्षतिग्रस्त करना ,उनका वीडियो बनाना ,सामूहिक दुष्कर्म करना यौन तुष्टि का नहीं वरन मनोविकृति का मामला है । यह व्यक्ति की परिवरिश को भी स्पष्ट करता है।
ऐसे लोग, ऐसी मानसिकता के लोग समाज में भरे पड़े हैं। हो सकता है आपके बगल का शालीन से दिखने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा दुष्कर्मी हो? तो हर व्यक्ति को शक की निगाह से देंखने की जरूरत हो गयी है आज के समय में। ज्यादातर रेप जान पहचान वाले ही करते हैं। कुछ ही रेप अपरिचित करते हैं। पर जितने भी रेप होते हैं वो मानसिक विकृति और परिवरिश की खामियों के कारण होते हैं । यह फिर से जान लें कि रेप शारीरिक संतुष्टि नहीं वरन मानसिक तुष्टि का कारण है जो एक विकृति है।
लड़कियों, स्त्रियों को घूरना , छूना या छूने की कोशिश करना , उनको प्रलोभित करना ये सब रेपिस्ट के ही लक्षण है । वह बीमार है । उसकी चिकित्सा जरूरी है । चिकित्सा मनोवैज्ञानिक कर सकते हैं। और सामाजिक चिकित्सा भी होती है। उनको डर तो पैदा करना ही होगा। सामाजिक लज्जा भी । तो इसके लिए ऐसे लोगों की सार्वजनिक कुटाई भी अनिवार्य है । बचपन से अच्छी परिवरिश भी जरूरी है। कानूनी चिकित्सा की क्या हालत है वह तो देख ही रहे हैं ? जो बहुत ही दुखद स्थिति में है। कि निर्भया के दुष्कर्मियों को सजा दिलाने में ही सात साल लग गए। उसका वकील तो इंटरनेशनल कोर्ट में जाने की बात करने लगा था ! अद्भुत न्याय व्यवस्था है ?
रेप की जो स्थिति भारत में है उस पर गम्भीरता से काम करने की जरूरत है। नहीं तो और भी बुरे दिन आने वाले हैं। हमारा समाज जहाँ स्त्रियों की पूजा की बात करता है वहाँ अब उसे मुँह छुपाने की भी जगह नहीं मिल पाएगी । देर तो हो चुकी है ,पर अभी भी चेतिये । आगे आइये ,रेप मुक्त समाज का निर्माण करें। यह केवल लॉ एंड ऑर्डर का ही मामला नहीं है । यह सामाजिक ,मनोवैज्ञानिक मुद्दा भी है। कुछ कीजिये । स्त्रियों को एक स्वस्थ दुनिया दीजिये जीने हेतु ! पर पहले यह शुरुआत खुद से ही कीजिये !
?

© डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना
3 अक्टूबर ,20

चुप्पी तोड़ो

CHUPPI TODO

✊✊

Related Articles