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माहवारी के मिथक

by Dr Shambhu Kumar Singh

माहवारी के मिथक

दुर्गा पूजा शुरू हो चुकी है । नवरात्रि की पूजा। शक्ति और सृष्टि की देवी दुर्गा जो स्त्री रूपा हैं हम उनकी पूजा करते हैं। दुर्गा हमारी माता हैं हम उनकी संतान । इसी नवरात्र में अष्टमी और /या नवमी को हमलोग कन्या पूजन करते हैं और उनको मिष्टान्न ,वस्त्र , अर्थ का उपहार देते हैं। पूरी ,खीर ,मिठाईयां ,फल हम उन्हें देते हैं। उनके पांव पखारते हैं। सम्मान के साथ ,प्रेम के साथ । हमारी संस्कृति में यह एक अनूठा आयोजन है जो स्त्रियों के प्रति हमारी मान्यताओं ,मूल्यों और व्यवहारों का प्रतीक है। यह यह भी दर्शाता है कि हमारे जीवन और समाज में स्त्री की क्या स्थिति है! पर आइये ,एक मुद्दे की बात पर थोड़ी चर्चा कर लें !
होता यह है कि हम जब कन्या पूजन हेतु बालिकाओं का चयन करते हैं तब यह देखते हैं कि बालिका कमउम्र हो ,वह रजस्वला भी नहीं हुई हो पूजन के पूर्व। मतलब अभी रजस्वला हो या नहीं यह तो छोड़िए पहले भी नहीं हुई हो! यह बात सुन या जान उनके मानस पटल पर कैसी धारणा अंकित होगी? क्या रजस्वला होना पाप है? या इसके कारण पूजन में कोई असुविधा होती है? आखिर रजस्वला क्यों नहीं होना चाहिए उन्हें? तो हमको इस पर विचार करने की जरूरत है।
यह बंदिश पहले प्रासंगिक भी हो सकती थी कि तब सफाई की उतनी जागरूकता नहीं थी। सुविधा भी नहीं थी। नैपकिन स्वास्थ्यप्रद नहीं होते थे। तो कुछ हद तक पहले इसके औचित्य को जायज भी ठहराया जा सकता था पर आज के युग में इस तरह की बंदिशें या वर्जनाएं अब स्वीकार्य नहीं।अब माहवारी के दौरान भी लड़कियां सफाई और स्वच्छता का बखूबी पालन करती हैं और अन्य पूजा व्रती लोगों की तरह ही साफ सुथरी होती हैं। तो अब इन मुद्दों पर खुल कर बात होनी चाहिए। केवल माहवारी के कारण किसी को कोई धार्मिक अनुष्ठान में नहीं शामिल किया जाना अत्यंत ही अमानवीय है और पाप भी। तो इस परंपरा का विरोध करें। पर कहीं भी जोर जबरदस्ती नहीं। इसे एक सौम्य आंदोलन का हिस्सा बनाएं, तथाकथित प्रगतिशीलता के आंच में अराजकता नहीं फैलाएं।
स्त्री का रजस्वला होना सृष्टि का संदेश है, उसका स्वागत करें। यह मातृत्व की पहली पायदान है।
पहले जब शादी होती थी तो जंघा पर पिता पुत्री को बैठा कन्यादान किया करते थे जिसे बहुत ही पुण्य कार्य माना जाता था। वही कन्या कन्यादान का हिस्सा होती थी जो रजस्वला नहीं होती थी। पर धीरे धीरे समय बदला और अब यह परंपरा खत्म हो रही है । अब लड़कियों की शादी भी पूर्ण वयस्कता पर हो रही है। यह एक अच्छी बात है!
नवरात्रि में देवी पूजन करते हमें स्त्रियों की अस्मिता और स्वत्व केलिए जरूर चिंतन करना है ताकि सृष्टि विहँसती नव अंकुर का स्वागत करे और दुनिया खिलखिलाती रहे।
जय श्री माँ दुर्गा !
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
संयोजक ,चुप्पी तोड़ो आंदोलन

चुप्पी तोड़ो

CHUPPI TODO

PETALS SANITARY NAPKINS

(ब्लैक एंड व्हाइट रेखाचित्र : साभार – अनु प्रिया)

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