Home Blog बिहारी पकवान:ठेकुआ

बिहारी पकवान:ठेकुआ

by Dr Shambhu Kumar Singh

बिहारी पकवान : ठेकुआ

बिहार का यह प्रसिद्ध पकवान है ,ठेकुआ। गेंहू के आटे ,चीनी और घी से निर्मित। ठेकुआ का हमारी भोजन परम्परा में विशिष्ट स्थान है। यह हमारे तीज त्यौहार का मुख्य पकवान होता है। हर शादी विवाह में यह इतराता मिल जाएगा । बिहार का बहुत ही लोकप्रिय पर्व ,छठ में तो यह मुख्य प्रसाद ही होता है।
ठेकुआ को कुछ लोग खजूर भी कहते हैं । खजूर या खजूरी । गेंहू के आटे को चीनी या गुड़ के साथ सान घी या वनस्पति तेल में तल कर इसे बनाया जाता है। इसमें मेवे भी डालने का रिवाज है । सूखे नारियल के छोटे छोटे टुकड़े काट इसमें मिलाए जाते हैं। किशमिश भी डाला जा सकता है। इलायची या सौंफ भी डाल इसके स्वाद को एक नया फ्लेवर देने का प्रयास भी होता है। ठेकुआ को बेला नहीं जाता है वरन लकड़ी के साँचा पर ठोका जाता है। साँचा में सुंदर आकृति बनी होती तो ठेकुआ में भी हम उन आकृति को उकेड़े देख सकते हैं। ठेकुआ स्वादिष्ट भी खूब होता है। इसे बना कर आप दस पंद्रह दिनों तक संरक्षित रख सकते हैं। तो बाहर जाने वाले लोगों यानी यात्रा हेतु यह एक सहूलियत का भोज्य पदार्थ है। यात्रा में चट निकालिए और अचार या सब्जी के साथ चट कर जाइये । तीर्थ हेतु भी यह सुविधाजनक खाद्य पदार्थ है। कोई झंझट नहीं। हमलोग जब होस्टल जाते थे इसे बनवा के ले जाते थे। तब जलपान का यही एक मजबूत सहारा होता था।
शादी विवाह में भी यह खूब प्रचलित है। बेटियों को उपहार में यह दउरा के दउरा भेजा जाता है। सनेश में यह खाजा का सगा भाई है। गांव देहात में अड़ोस पड़ोस को बैना देने केलिये भी है यह एक सुंदर पकवान ,सहज सुलभ !
छठ पर्व का यह विशिष्ट पकवान है। इसके बिना छठ पर्व की कल्पना शायद हमलोग नहीं कर पाएं ? केला ,ठेकुआ तो पर्याय है छठ पर्व का । और कुछ हो या न हो इसे तो होना ही चाहिए । परणा के दिन क्या बूढ़े ,क्या बच्चे सभी ठेकुआ पर टूटे हुए मिलते हैं। उसदिन तो यही लगभग भोजन का अंग होता है। ठेकुआ चीनी के अलावा गुड़ का भी बनता है। अपनी अपनी रुचि है। जो मन हो बनाइये। इसे खाने हेतु छुरी कांटे की जरूरत नहीं पड़ती। दांत से तोड़ खाइये । पर कुछ ठेकुआ कड़े होते हैं तो उससे दांत भी टूटने का डर रहता है।तो संभल कर खाएं। मुलायम ठेकुआ के लिए घी का मोइन या मइजन दीजिये । देखिये फिर खा के ,लगेगा स्वाद का सागर जिह्वा पर हिलोर मार रहा है । ठेकुआ तलना भी एक कला है । कुछ लोग कड़ा तलते हैं । झुर तलते हैं। डार्क रंग आ जाता है। तब इसका स्वाद और भी अलग होता है।
ठेकुआ जैसा ही रोट होता है। पर यह समझने की भूल न करें कि ठेकुआ और रोट एक ही चीज है। रोट और ठेकुआ में ज्यादा अंतर नहीं होता परन्तु एक बुनियादी अंतर यह होता है कि रोट ठेकुआ से बड़ा होता है और मोटा भी । पर स्वाद इसका भी अद्भुत होता है।हनुमानजी को प्रसाद में रोट चढ़ाने का विधान है।हमारे यहाँ घरी पवनी में भी रोट बनता है।
आइये एक और बात बताते हैं, हमरे गांव में हमारी एक भउजी थी । उनका मुँह एकदम ठेकुआ जैसा हमलोगों को लगे । क्योंकि वो गोरी रंगत की थी तो हम उन्हें कच्चा ठेकुआ बोलते थे। जो भी हो आप अपने घर में ठेकुआ बनवाने की कोशिश जरूर कीजियेगा। खाइयेगा तो बोलियेगा गजब का है यह पकवान !
मेरा बिहार महान !
??
डॉ. शंभु कुमार सिंह
19 सितंबर,2020, पटना

प्रकृति मित्र

Prakriti Mitra

??

Related Articles