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बिहारी खानपान

by Dr Shambhu Kumar Singh

बिहारी ग्रामीण व्यंजन : बगिया

आज श्रीमती जी इडली बनाई हैं । इडली,नारियल की चटनी,आंवले और धनिया की पत्तियों की चटनी,सांभर दाल! खूब स्वादिष्ट। अच्छा बनाती हैं ये अगर ठान लें नहीं तो रोटी चोखा में भी धोखा ही धोखा! तो आज इनके द्वारा बहुत ही सुंदर व्यंजन खाने को मिला। इनको पूछा कि यह इडली हमारे बिहार में प्रचलित बगिया जैसा ही है तो उन्होंने कहा कि हाँ, यह कुछ कुछ वैसा ही है। पर जब गौर से देंखे तो बहुत ही अंतर है।बगिया इडली नहीं है। बिहारी बगिया भरवा भी हो सकता है,मीठा भी और नमकीन भी।
बिहार में बगिया चावल के बनते हैं।कहीं कहीं इसे पिट्ठा भी कहा जाता है।एक किस्म दलपिट्ठा भी! पर मैं जिस बगिया की चर्चा करने जा रहा हूँ वह मकई के आटे का बनता है। बनता है या यह कहें कि बनता था।हमारे आँगन में ही एक और दादी थी ,उनको हम पूजावाली दादी कहते थे।वो हमेशा कुछ न कुछ अलग बनाती रहती थी। फिर वह हमलोगों को भी देती थी खाने को। इसी तरह के व्यंजनों में एक बगिया बनाती थी। पर वह उसे चावल से नहीं मकई के आटे से बनाती थी।
मकई के आटे से बगिया वह इसी सीजन में बनाती थी।तब देशी किस्म की मकई की फसल लगती थी। जो भादो-आसिन में कट जाती थी। ये मकई के दाने बड़े ही मीठे होते थे और उनकी महक भी बड़ी प्यारी। तो तभी तत्काल कटी मकई के दानों को जो कुछ कुछ कच्चे से होते थे उनका आटा बनाती थी।उसका आटा बनाना भी अलग तरीके से होता था।क्योंकि बहुत सूखे नहीं रहने के कारण ये पिसे नहीं जाते थे वरन मकई के तुरंत छुड़ाए दानों को ओखल में रख कूटा जाता था। ये गीले से आटे के रूप में कूट कर प्राप्त हो जाते थे।फिर इनकी लोई बनाई जाती थी। लोई या लोइया। लोई को सीप के आकार का चिपटा कर बगिया बनाया जाता था।अब नमकीन या सादा या मीठे स्वाद का चाहिए ,तो जैसा चाहिए उसमें वैसा ही नमक या शक्कर मिलायी जाती थी। मुझे मीठा ज्यादा पसंद था।
कच्चे बगिया को खौलते पानी में पकाया जाता था। सामान्यतया एक खपरी में जो किनारेदार तवा या कड़ाह होती थी उसमें पानी डाल खौलाया जाता था। खौलते पानी में बगिया को डाला जाता था।उसके ऊपर भुट्टे के छिलके जिसको हमलोग बलखोइया कहते हैं उसको डाला जाता था ताकि भाप उड़े नहीं और बगिया ठीक से पके। जब बगिया पक जाए तो उसे गरमागरम खाया जाता था। यह ठंडा भी खाया जाता था बल्कि बासी तो और भी मीठा और टेस्टी होता था!
पर बहुत दिन हो गए ऐसा बगिया नहीं खाया। अब देशी मकई का मिलना भी कठिन है।और वैसी बनाने वाली दादी भी नहीं रही।अब तो लोग एकदम हड़बड़ाए पिज्जा हट जाने को मिल जाते हैं।पर जो बगिया खाया होता है उसे कभी नहीं भूल पाता, जैसे मैं। करीब पचास साल हो गए ,हमने तब इसे खाया था!
क्या आप कभी खाये हैं इसे? अगर हाँ तो शायद ही कभी विस्मृत कर पाएं इसका स्वाद!?

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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
4 सितंबर,2020,पटना
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