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फेसबुक पर मैं

by Dr Shambhu Kumar Singh

फेसबुक पर मैं

फेसबुक पर मैं क्यों हूँ ? यह यक्ष प्रश्न हमेशा मेरे दिमाग में आता रहता है । शायद आप सभी को भी कभी न कभी आता हो ?
मुझे तो लगता है ई फेसबुक झरोखा है जिस पर बैठ जग का मुजरा लख रहे हमलोग ! बैठ झरोखा जग का मुजरा ले ! फिर कभी कभी लगता है कि यह झरोखा नहीं हो शो केस हो या विंडो जहाँ हमलोग अपना अपना प्रोडक्ट ले दुकानदारी जमा रहे हैं ? यह कुछ ज्यादा युक्ति संगत लगता है ! पर यह भी बहुत सत्य शायद ही हो ? पर है कुछ न कुछ ऐसा ही !
सब लगा हुआ है अपना चेहरा चमकाने में ! मैं खुद यही कर रहा हूँ । कभी यह ,कभी वह ! लाइक्स मुझे भी प्यारे लगते हैं पर मैं इस हेतु न रिक्वेस्ट करता हूँ न धमकी देता हूँ ! कुछ लोग तो बाजाब्ता एलान करते हैं कि अब नहीं लाइक्स किये तो लो निकाल दूंगा ! बाप रे बाप ! मने यहाँ भी रंगदारी है । मुझे लाइक कर नहीं तो बाहर का रास्ता देख । यानी मित्र बने हो तो एक्टिव रहो ,निष्क्रिय नहीं ! अब कभी कभी मैं भी डर जाता हूँ , न जाने कौन मुझे निष्क्रिय समझ ले ?
पर मैं हूँ निर्मोही ! जिसका पोस्ट मुझे मिला ,अच्छा लगा उसको लाइक जरूर करता हूँ भले ही वह मुझे कुछ भाव देता हो या नहीं ? कुछ को तो मैं लगातार दिल साटता रहा जो शायद ही कभी मेरे पोस्ट पर कभी आया हो !
तो क्या ,लिखते हो अच्छा तो दाद तो दूंगा ही , अब तुम मुझे चाहो या नहीं ? कुछ तो ऐसे अभिजात्यवर्ग के फ्रेंड्स हैं जो साक्षात ईश्वर रूप हैं ,कभी लाइक कर देते हैं तो लगता है कि अरे वाह ,जीवन धन्य हुआ ! अजीब बात है ? वर्ण व्यवस्था इस फेसबुक पर भी है ! कुछ बड़े लोग हैं, कुछ समकक्ष ,कुछ छोटे छोटे लोग ! किसी किसी को कोई ऐसे भी लाइक करता है कि अगर मौका मिले तो तलवा भी चाट ले ? अजीब अजीब लाइकबाज हैं यहाँ !
लड़कियों को खूब लाइक्स मिलते हैं ! चाहे जैसी हो ! भंवरा मंडराता रहता है । गुनगुनाता रहता है ! शिकार चालू है ,शिकारी आएगा ,जाल बिछायेगा ,दाना डालेगा ,लोभ से फँसना नहीं रटते लोग जाल में फंसे रहते हैं और दूसरे को दोष देते मिल जाते हैं ।
कभी कभी मुझे भी इनबॉक्स में अद्भुत सुंदरियों के प्रणय निवेदन आते हैं ! मैं तो लहालोट हो जाता हूँ ! धन्य प्रभु ,कितनी बड़ी कृपा की आपने! पर इस पार प्रिय मैं हूँ उस पार न जाने क्या होगा यह सोच उन्हें मैं दूर से दंडबत प्रणाम कर लेता हूँ ।
मैं भी कभी कभी किसी के इनबॉक्स में चला जाता हूँ ,जो थोड़ी निकट की है या का है ! लड़कियों के इनबॉक्स में जाने से कतराता हूँ । पर एक बार आधीरात को एक नितांत ही युवा लड़की के लड़की के इनबॉक्स में चला गया ! लड़की कुछ व्यस्त थी । वह मुझे झल्ला गयी । झाड़ू उठाती ही कि मैं हाथ जोड़ दिया ,कि मुझसे गलती होई गवा ,मुझको माफी देइ दो ! उसे बोला कि मुझे नींद में चलने की बीमारी है तो आज वही चल के तुम्हारे इनबॉक्स में आ गया ,क्या करूँ कोरोना के कारण डॉक्टर से मिल नहीं पाया ! अब लड़की तो दयालु होती है ,एकदम से पिघल गई ,बोली कोई बात नहीं ,जब आये ही हो तो थोड़ी चाय पीते जाओ । यथोचित आदर सत्कार के बाद वह विदा की !
पर भूल के भी मैं अनजान दोस्त के इनबॉक्स में नहीं जाता , इधर तो प्यासी आत्मा है यह मुझे मालूम है पर उधर कौन परमात्मा होंगे पता नहीं ? तो बचके रहना रे बाबा !
यह फेसबुक एक दीवार भी है । जिसे कोई नहीं मिलता उसको यहाँ यह दीवार मिल जाती है । इससे लग रोना अच्छा लगता है । इस आत्मकेंद्रित दुनिया में आपको रोने हेतु एक दीवार मिल जाती है ,यह क्या कोई कम है ? वैसे फेसबुक की दुनिया इतनी बड़ी है कि कोई न कोई दिल की बात सुनने वाला मिल ही जाता है !
मैं भी अपनी बात कह दी !
सुन रहे हो ना ?

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
18 मई ,2020
पटना ।

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