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तुम बहुत याद आये

by Dr Shambhu Kumar Singh

सुनो !
हुं, बोलो ?
इंग्लिश वाला नोट दे दो । कल्ह पढ़ कर दे दूंगा ।
लो, ध्यान से पढ़ना !
हम ऐसे ही उससे नोट लिया करते थे । पढ़ाकू लड़की थी । क्लास में वही फर्स्ट करती थी । हैंडराइटिंग ऐसी जैसे मोती की माला हो ! देखने में हीरे जैसी । एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी । दो बहनें आती थी स्कूल । एक ग्यारहवीं में और दूसरी नौवीं में । बड़ी वाली मेरी सहपाठिन।
हालांकि मैं भी उससे कम नहीं था । उसके यहाँ आने से पहले मैं ही फर्स्ट करता था क्लास में । पर यह लड़की आयी तो सब गड़बड़ हो गया । वो जमाना ऐसा था कि क्लास में लड़का लड़की सहज बात नहीं करते थे । सीधे एक दूसरे को देखते भी नहीं थे । बात ऐसे होती थी कि भावज अपने जेठ से जैसे बात कर रही हो !मोबाइल का जमाना नहीं था । वरन वह बेसिक फोन भी सभी को न होता था । हालांकि उसको तो सरकारी फोन मिला हुआ था । पर हम लोगों के लिए ये तब सपना था । मैं जिनके यहाँ रह कर पढ़ता था वो भी ऊंचे पदासीन व्यक्ति थे और उनको भी फोन मिला हुआ था पर हम उनके फोन को यूज नहीं कर सकते थे । कुछ बंदिशें थी । तो किसी लड़की से संवाद बड़ी मुश्किल चीज थी ।बल्कि अगर कभी कोई लड़की कभी मुड़ के मुस्कुरा दे तो लगता था कि आज दीवाली मना लिए । न जाने कितने अनार फूटने लगते थे दिल में ! तो ऐसे थे वो दिन !
ऐसा नहीं था कि लड़कियों को दिल नहीं था या वो इसे बड़े ही जतन से तिजोरी में छुपा के रखे हुए रहती थीं ,वरन वो बेचैन हिरणी सी कस्तूरी गन्ध की खोज में कुलांचें मारती रहती थी। पर कहाँ न कस्तुरी कुंडली बसे …उसे कभी मिल नहीं पाती थी यह । हर लड़की के दिल में कोई न कोई प्रेम कहानी दफन होती ही रहती थी !
आज फिर वह मिली । शेक्सपियर के द मर्चेंट ऑफ वेनिस पर चर्चा की और बोली कि ब्यूटी एंड द बीस्ट से कौन कौन क्वेश्चन आने वाले हैं । तब मैट्रिक की परीक्षा ऐसी परीक्षा होती थी कि लगता था कि सिविल सेवा की परीक्षा दे रहे हो ! और जब वह कोई सजेशन दे रही होती थी तो और भी परीक्षा महत्वपूर्ण लगती थी ।
मेरी पढ़ाई ठीक ही जा रही थी । पर एक सत्रह साल के लड़के की जिंदगी में इस तरह कोई लड़की जब पढ़ाई पर बात करने लगे तो पढ़ाई में सुधार के बजाय बिगाड़ ज्यादा होने लगी । मेरा पढ़ने में मन नहीं लगने लगा । रात रात भर जगने लगा । हर वक़्त वही सामने आने लगी । बल्कि सपने में भी वह पढ़ाने लगी । जबकि मेरा मन होता था कि उसके हाथ को पकड़ थोड़ा उसे छू लूं , पर वह तो हमारे हेड मास्टर से भी ज्यादा तन्मयता से पढ़ाई पर भिड़ी हुई थी । हद तो यह हो गया कि एक दिन वह सपने में मुझे गणित पढ़ा रही थी । जबकि वह आर्ट्स की स्टूडेंट थी । मैं तो घबरा गया । नींद टूट गयी । इसी हड़बड़ाहट में दो गिलास पानी पी गया । और पूरी रात फिर नहीं सो सका !
पढ़ाई में जितना तेज था उतना ही कमजोर हो गया । वह भी कभी कभी चिंतित नजर से मुझे देखे । कई बार मैं भी उसे चोर नजर से देखने की कोशिश की तो देखा वह मेरी तरफ ही देख रही है । एक दो बार तो वह सामने आने पर भी मुस्कुरा कर भी मिली । बोलती मुझे कि तुनको तो मैं समझती थी कि होशियार हो पर हो गब्दु ! अब गब्दु क्या होता है मुझे नहीं मालूम । इस शब्द को कितनी ही डिक्शनरियों में तलाशा नहीं मिली । अब तो मन और बेचैन ,वह आखिर क्या बोली,और बोली तो क्यों बोली ? अब किससे पूछें ? खैर, पढ़ाई तो एकदम ही गड़बड़ा गयी ।
स्कूल से गांव गया तो माँ मेरी हालत देख एक ज्योतिषी से एक ताबीज मांग गले में बांध दी । माँ को क्या पता कि बेटा एक अजीब टीचर से परेशान है ! सेंटअप परीक्षा का रिजल्ट आया तो फीजिक्स में मैं फेल साथ ही एक और पेपर में । स्कूल के साथ घर , जवार सब में तहलका कि मैं फेल कर गया । हेड मास्टर साहब एक दिन बुलाये और मुझे समझाया । यह भी बोले ,कोई परेशानी नहीं न है ? मैं न में सिर हिला दिया । पर परेशानी थी । दरअसल मैं उस लड़की को चाहने लगा था ! पर मैं कैसे कहूँ उसे कि मैं उसे प्यार करता हूँ । यह संभव नहीं था। तब प्यार का इजहार अपराध माना जाता था। चरित्रहीनता भी। और तब स्कूल का सबसे नेक तथा लोकप्रिय स्टूडेंट प्रेम निवेदन का जोखिम उठा नहीं सकता था !
फिर परीक्षा तैयारी की छुट्टी हो गयी । सभी एक दूसरे से विदा हो रहे थे । मैं भी उदास था । क्लास नाइन,बी में एक खाली बेंच पर बैठा था । हमारे क्लास में तो रोने धोने का कार्यक्रम चल रहा था । मैं सच में बहुत ही उदास था । सोच रहा था ,अब यह बस एग्जाम सेंटर पर ही मिलेगी ,नहीं तो कभी नहीं । यही सोच रहा था कि वह क्लास रूम में आ गयी । बोली , इसे देखो ,यहाँ है , पूरे गब्दु हो ! मैं तुझे कहाँ कहाँ न खोजी ,पर हुजूर यहाँ आराम फरमा रहे हैं । कुछ देर चुप रह फिर वह बोली कि हमलोग एक दूसरे से पत्र से जुड़े रहेंगे । एक कॉपी निकाली जिसमें सभी के पते नोट थे । मुझे भी बोली कि अपना घर का पता दो । मैं लिख दिया । फिर वह अपना पता मुझे लिख कर दी । मैं चुप ही रहा । क्या कहता ? जो कहना चाह रहा था वह कह तो सकता नहीं था तो और दूसरी बात कहना ही क्या थी? तो चुप रहा । वह बोली , कुछ बोलो न ? मैं उसे इतना ही कहा कि हाँ, हम पत्र लिखेंगे । वह मुझे तीन कापियां दी जो नोट्स थे । वह मेरे लिये ही बनाई थी । बोली , मन लगा कर पढ़ना । रिजल्ट अच्छा आना चाहिए । तुम जितने अच्छे हो वैसा ही ! यह सुन मैं जैसे तंद्रा से बाहर आया । अब वह फूट फूट रो रही थी । एक अच्छे लड़के की तरह मैं उसे रोते देखता रहा । तभी छुट्टी की घण्टी बजी और वह अपना चेहरा पोछ क्लास रूम से बाहर हो गयी । उसके दिए नोट्स की कापियां मैंने सहेज कर रखी । मन लगा कर पढ़ा भी । मैट्रिक में अच्छे रिजल्ट आये । अंग्रेजी में 83 परसेंट । यह एक बहुत बड़ी बात थी तब । मेरे रिजल्ट पर वह बहुत खुश हुई और पत्र भी लिखी थी । मैं भी उसे पत्र लिखता था ,बस यही कि कैसी हो ? कहाँ हो ? बहुत बातें नहीं लिख सका ,न वह लिख पायी । फिर कुछ दिनों के बाद उससे संपर्क टूट गया। उसकी कॉपियां अभी भी हैं मेरे पास । जिसकी जिल्द कुछ फट से गयी थी । मैं उन्हें एक दिन ऐसे ही देख रहा था कि जिल्द के अंदर से कुछ गुलाबी कागज झांकते मिले । मैंने सभी कॉपियों की जिल्द हटाया , उत्सुकता बहुत बढ़ गयी थी , कि क्या है ?
पर जिल्द के छुपा के रखी जो चीज थी उसे देख मैं चौंक गया । वो सब प्रेम पत्र थे ! सब उसी के लिखे थे मेरे नाम ! सभी के हर्फ आँसुओं से भींगे । उसमें प्यार था । उतावली लड़की का दिल था । मुझे मन से पढ़ने की नसीहत थी । न जाने कितने कसमें वादें थे ! कुछ फिल्मी गीतों की लाइनें थी । कच्ची दूब की छुअन थी । अजीब सी खुश्बू भी थी । कुछ सूखे गुलाब की पंखुड़ियां भी !
मैं उन चिट्ठियों को देख मौन हूँ । ऐसा लगा जैसे मुझे काठ मार गया है ! चुपचाप जमीन पर बैठे एकटक इन कॉपियों को निहार रहा हूँ । बाहर बहुत तेज धूप है ,अंदर एक पूरी बरसात बरस रही है आंधी तूफान के साथ !
(एक सच्ची घटना पर आधारित ! © डॉ. शंभु कुमार सिंह)

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