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रागी का अनुराग

by Dr Shambhu Kumar Singh

रागी राग

रागी उर्फ मड़ुआ

कुछ दिन पहले एक डिपार्टमेंटल स्टोर में गया था। मड़ुआ का आटा लेना था। हमारी एक रिश्तेदार अपने बेटे को मड़ुवे के आटे का हलुआ खिलाती थी। तो उसे जरूरत थी। आटा ऑर्गेनिक था। दाम आसमान छूता।
आज से तीज का पर्व भी शुरू है। कल तीज फिर परसों चकचन्ना। इसी तिथि को लोग गणेश चतुर्थी भी मनाते हैं।हमारे यहाँ जब माँ चकचन्ना करती थी तो कई दिन पूर्व से ही दही जमाने हेतु कतरी की व्यवस्था करनी होती थी। कुम्हार के यहाँ खूब हलचल । लोग ठोक पीट अच्छी कतरी ले रहे । फिर दही जमाया जाता । पूरी ,खीर बनती। फल,फूल के साथ शाम में चांद को पूज हम सबों को प्रसाद देती थी माँ! अब माँ नहीं है तो पूजा भी नहीं होती। माँ कहीं आसमान में कोई तारे के रूप में शायद अभी भी हमें देखती हो ? क्या पता ?
तीज में चावल का मीठा सत्तू घी में सानल व्यवहार होता है । पर जितिया पर्व में माँ मड़ुआ का आटा प्रयोग में लाती थी। नूनी का साग भी बनता था।ये ऐसे भोज्य पदार्थ हैं जिनको लोग भूल गए। हमारे पूर्वजों को यह भान था कि उनकी संतानें नालायक निकलेगी तो ऐसे खाद्य पदार्थ हमारे तीज त्यौहार में अनिवार्य कर दिए कि हमें उनको व्यवहार करना ही पड़ता है।
मड़ुआ पहले हमारे यहाँ खूब होता था। मोटा अनाज होता है। लोग इसे गरीबों का भोजन कहते थे। खेतों में मड़ुवे की फसल लहलहाती दिख जाना सामान्य सी बात थी। पर अब तो बीज भी नहीं मिलते। देशी कौन कहे संकर बीज भी नहीं मिलते। किसको मड़ुआ की जरूरत है ? पिज्जा पीढ़ी तो शायद नाम भी न जाने? पर नेट युग ने जब मड़ुआ यानी रागी के गुण गाने लगा तो लोग पूछने लगे कि यह मड़ुआ है क्या ? जिनको जरूरत पड़ी और देखा कि यह तो गुणों की खान है तो बाजार की ओर दौड़े। बाजार के बड़े बड़े मॉल में ऑर्गेनिक रागी के रूप में इसके महंगे आटे उपलब्ध हैं। अब यह गरीबों का भोज्य पदार्थ नहीं है। बड़े बड़े अमीर ही इसे खरीद पाते हैं।गरीब भी अपना रंग बदलने के फेर में मड़ुआ को भूल गए। तो घूम रहे हैं डॉक्टरों के दरवाजे । अमीर तो पहले से वहाँ थे ही।
मड़ुआ यानी रागी के बहुत से व्यंजन बन सकते हैं । बना कर देखिये। रसगुल्ले तो लाजवाब। पुआ ,पूरी भी! हलवा बनाएं या फिर मिल्कशेक! सब के सब स्वाद की खान! हेल्थ को बेहतरीन बनाने वाले खाद्य पदार्थ! दक्षिण भारत में अभी भी खूब लोकप्रिय!
नेपाल के अन्नपूर्णा क्षेत्र में रागी की खेती होती है। कर्नाटक देश का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है । झारखंड में भी अभी खेती होती है ।
भारत में कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में रागी का सबसे अधिक उपभोग होता है। इससे मोटी डबल रोटी, डोसा और रोटी बनती है। इस से रागी मुद्दी बनती है जिसके लिये रागी आटे को पानी में उबाला जाता है, जब पानी गाढ़ा हो जाता है तो इसे गोल आकृति कर घी लगा कर साम्भर के साथ खाया जाता है। वियतनाम में इसे बच्चे के जन्म के समय औरतों को दवा के रूप मे दिया जाता है। इससे मदिरा भी बनती है।
पर दुखद है कि अब तीज-त्यौहार में भी मड़ुआ का आटा यहाँ सामान्यतः नहीं मिलता ! लोग जब रोग की खेती पर उतारू हो जाएं तो कौन उन्हें रागी की खेती की ओर ले जाएगा ? एक छोटा सा मैं प्रयास कर रहा हूँ । क्या आप थोड़ी ही सही देशी मड़ुआ की खेती करेंगे ?
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
20 अगस्त ,20
पटना

प्रकृति मित्र

रसोईघर से

Prakriti Mitra

Rasoi Ghar Se

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