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फुलवा बीड़ी फूंकनी

by Dr Shambhu Kumar Singh

बीड़ी जलाई ले !

आज भोरे भोरे बड़की भउजी की छोटकी बहिन फुलवा आ गयी ! बोली कि ई डिस्टेंसिंग से बोर हो रहें थे तो जिज्जी से मिलने आ गई। और जिज्जा आप से भी। पर इतनी अच्छी फुलवा में एक ऐब देखे । हुआ कि तीर्थ यात्रा में फुलवा बीड़ी पीने लगी । दिन में दस बीस फूंक ही देती है। आई है पर बीड़ी लाना भूल गई ! बेचैन है।बीड़ी भी लैला मजनूँ छाप वाली । पहले नेताजी ब्रांड पीती थी पर अभी नेताओं की करतूत देख उस ब्रांड पर थूकती भी नहीं ,तो उसे धुकने की बात ही नहीं उठती !
पत्नी बोली कि ले आइये,बीड़ी इसके लिए । अब बीड़ी भी प्रेम प्रकाश चौरसिया की दुकान पर मिलती है और दुकान भी चौरास्ते पर । बड़ी दिक्कत है काहे कि उसी चौरास्ते पर चार चार पुलिस लॉक डाउन तोड़ मटरगश्ती करने वालों को चार चार डंडा लगा दिन में ही चार चांद दिखा रहे हैं । मुझे भी बाहर जाने से डर लग रहा है पर फुलवा को देख लगा कि मर जाऊंगा पर बीड़ी जरूर लाऊँगा। फुलवा लग भी रही है आज बड़ी जानलेवा! एकदम बदरी हलुआई के गुलाबजामुन की तरह। हालांकि बदरिया गुलाबजामुन बहुत महंगा देता है। पर इसी समय मुझे संतों की बाणी याद आ गई ,कि देख पराई चुपड़ी मत ललचावे जीव ! तो एक झोला ले बाहर निकल पड़ने को हूँ । अरे वह फ़क़ीर वाला निकलना नहीं वरन पुलिस को धोखा देने के इरादे से झोला ले लिया हूँ कि उसे लगे कि आदमी निहायत ही जरूरतमंद है और दंड प्रहार नहीं करे। फिर भी पत्नी चिंतित हैं। कुछ ज्यादा ही जैसे हर रोज दाल में कुछ ज्यादा नमक रहती है! बोली, संभल कर जाइयेगा, पुलिस मिले तो एक दो बीड़ी उसे भी दे दीजियेगा। यह सुन फुलवा बोली ,जिज्जी ,अगर बीड़ी खरीदने के पहले ही पुलिस मिल गई तो? फुलवा के इस ज्ञान पर दिल मेरा बाग बाग हो गया हालांकि इस बाग में फुलवा नहीं थी वह तो सामने कुर्सी पर बैठी हुई थी। मन किया उसे स्पर्श कर लूं ,अरे भाई चरण स्पर्श !
पत्नी फिर चेता रही है कि संभल कर जाइयेगा । मैं उसे बोलता हूँ कि मेरे फेसबुक लिस्ट में पुलिस के बहुत लोग हैं ,मुझे कुछ नहीं होगा । इस पर वह और चिंतित हो बोली कि क्या आपका फेसबुक स्टेटस खंगाल कर आपका पुलिस बीच सड़क पर अभिनंदन करेगी ? मैं क्या जवाब दूँ? बड़ी धर्म संकट में हूँ । वह बहुत ही चिंतित सी लगी । मुनासिब भी है ,जानती है कि दो डंडा में ही प्राण नाथ के प्राण पखेरू उड़ जाएंगे । मैं उसे पूरा आश्वस्त कर बाहर निकलता हूँ । पीछे मुड़ कर देखता हूँ ,फुलवा अर्ध वर्तुलाकार बालकनी पर गुलदाउदी के फूल की तरह लटकी मुझे ही देख रही है । उसकी कजरारी आंखें देख मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा रहा है पर मुझे पुलिस को भी दूर से देखना है तो आंखों को मल आगे बढ़ जाता हूँ । पीछे से फुलवा के गाने की आवाज आ रही है ,बीड़ी जलाई ले …!
जो रे पगली ,तुम नहीं सुधरेगी !

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
24 अप्रैल ,2020 ,पटना

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1 comment

Dr.Shambhu Kumar Singh August 21, 2020 - 9:17 am

Very beautiful poem describing the pain of a woman. Thanks .

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